
होली 2014, 17 मार्च


प्राचीन काल की होली (Holi in ancient times)
पौराणिक समय में श्री कृ्ष्ण और राधा की बरसाने की होली के साथ ही होली के उत्सव की शुरुआत हुई. फिर इस होली को मुगलों ने अपने ढंग से खेला. मुगल सम्राज्य के समय में होली की तैयारियां कई दिन पहले ही प्रारम्भ हो जाती थी. मुगलों के द्वारा होली खेलने के संकेत कई ऎतिहासिक पुस्तकों में मिलते है. जिसमें अकबर, हुमायूं, जहांगीर, शाहजहां और बहादुरशाह जफर मुख्य बादशाह थे जिनके समय में होळी खेली जाती थी.
अकबर काल में होली के दिन बाकायदा बडे बडे बरतनों में प्राकृ्तिक वस्तुओं का प्रयोग करते हुए, रंग तैयार किये जाते थें. रंग के साथ स्वादिष्ट व्यंजनों का भी प्रबन्ध होता था. राग-रंग का माहौल होता है. तानसेन अपनी आवाज से सभी को मोहित कर देते है. कुछ इसी प्रकार का माहौल जहांगीर और बहादुरशाह जफर के समय में होली के दिन होता था. ऎसे अवसरों पर आम जनता को भी बादशाह के करीब जाने, उनसे मिलने के अवसर प्राप्त होते थे.आज होली के रंग, इसकी धूम केवल भारत तथा उसके प्रदेशों तक ही सीमित नहीं है, अपितु होली का उडता हुआ रंग आज दूसरों देशों तक भी जा पहुंचा है. ऎसा लगता है कि हमारी परम्पराओं ने अपनी सीमाओं का विस्तार कर लिया है. यह पर्व स्नेह और प्रेम का है. इस पर्व पर रंग की तरंग में छाने वाली मस्ती पर संयम रखते हुए, अपनी मर्यादाओं की सीमा में रहकर, इस पर्व का आनन्द लेना चाहिए.

आज की होली (Holi celebration in modern times)
प्राचीन काल में होली खेलने के लिये पिचकारियों का प्रयोग होता था, परन्तु समय का पहिया घूमा ओर समय बदल गया, आज पिचकारियों से होली केवल बच्चे ही खेलते है. प्रत्येक वर्ग होली खेलने के लिये अपने अलग तरह के संसाधनों का प्रयोग करता है, उच्च वर्ग एक और जहां, इत्र, चंदन और उतम स्तर के गुलाल को प्रयोग करता है. वहीं, दुसरा वर्ग पानी, मिट्टी ओर कभी कभी कीचड से भी होली खेल कर होली के त्यौहार को मना लेता है.
होली का त्यौहार बाल, युवा, वृ्द्ध, स्त्री- पुरुष, बिना किसी भेद भाव से उंच नीच का विचार किये बिना, एक-दूसरे पर रंग डालते है. धूलैण्डी की सुबह, घर पर होली की शुभकामनाएं देने वाली की भीड लग जाती है. होली के दिन जाने - पहचाने चेहरे भी होली के रंगों में छुपकर अनजाने से लगते है. होली पर बडों को सम्मान देने के लिये पैरों पर गुलाल लगा कर आशिर्वाद लिया जाता है. समान उम्र का होने पर गुलाल माथे पर लगा कर गले से लगा लिया जाता है. और जो छोटा हों, तो स्नेह से गुलाल लगा दिया जाता है.
होली की विशेषता (The Special thing about Holi)
भारत के सभी त्यौहारों पर कोई न कोई खास पकवान बनाया जाता है. खाने के साथ अपनी खुशियों को मनाने का अपना ही एक अलग मजा है. इस दिन विशेष रुप से ठंडाई बनाई जाती है. जिसमें केसर, काजू, बादाम और ढेर सारा दूध मिलाकर इसे बेहद स्वादिष्ट बना दिया जाता है. ठंडाई के साथ ही बनती है, खोये की गुजिया और साथ में कांजी इन सभी से होली की शुभकामनाएं देने वाले मेहमानों की आवभगत की जाती है. और आपस में बैर-मिटाकर गले से लगा लिया जाता है. दुश्मनों को भी दोस्त बनाने वाला यह पर्व कई दोनों तक सबके चेहरों पर अपना रंग छोड जाता है.
होली का पर्व सूरज के चढने के साथ ही अपने रंग में आता है. होली खेलने वाली की टोलियां नाचती-गाती, ढोल- मृ्दगं बजाती, लोकगीत गाती सभी के घर आती है, ओर हर घर से कुछ जन इस टोली में शामिल हो जाती है, दोपहर तक यह टोली बढती-बढती एक बडे झूंड में बदल जाती है. नाच -गाने के साथ ही होली खेलने आई इन टोलियों पर भांग का नशा भी चढा होता है. जो सायंकाल तक सूरज ढलने के बाद ही उतरता है.
होली की टोली के लोकगीतों में प्रेम के साथ साथ विरह का भाव भी देखने में आते है. इस दिन होली है.........की गूंज हर ओर से आ रही होती है.

होली में भावनाओं की अभिव्यक्ति (Holi and self-expression
होली भारतीय समाज में लोकजनों की भावनाओं की अभिव्यक्ति का आईना है. यहां परिवार को समाज से जोडने के लिये होली जैसे पर्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है. समाज को एक-दूसरे से जोडे रखने और करीब लाने के लिये होली जैसे पर्व आज समाज की जरूरत बन कर रह गये है. आधुनिकता की दौड में शहरों में व्यक्ति भावना शून्य हो गया है. गांवों में एक और जहां किसी एक व्यक्ति के बीमार पडने पर सभी ग्रामीण हाल चाल पूछने आते है., किसी एक पर विपदा आने पर वह विपदा पूरे गांव की होती है. इसके विपरीत शहरों में साथ वाले फलैट में कौन रहता है, यह जानने में भी कई बरस लग जाते है. सभी मायनों में देखा जाये तो आज होली की जरूरत शहरों के इस मौन को तोडने के लिये सबसे अधिक है.
होलाष्टक प्रारम्भ 2014, 8 मार्च - शनिवार
Holashtak begins 2014, 8th March - Saturday

होली की शुरुआत होली पर्व होलाष्टक से प्रारम्भ होकर दुलैण्डी तक रहती है. इसके कारण प्रकृ्ति में खुशी और उत्सव का माहौल रहता है. वर्ष 2014 में 8 मार्च, 2014 से 16 मार्च, 2014 के मध्य की अवधि होलाष्टक पर्व की रहेगी. होलाष्टक से होली के आने की दस्तक मिलती है, साथ ही इस दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरु हो जाती है.

होलिका दहन में होलाष्टक की विशेषता (The importance of Holashtak for Holika Dahan)
होलिका पूजन करने के लिये होली से आंठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकडी, सूखी खास व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है. जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है. जिस गांव, क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर पर यह होली का डंडा स्थापित किया जाता है. होली का डंडा स्थापित होने के बाद संबन्धित क्षेत्र में होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है.
होलाष्टक के दिन से शुरु होने वाले कार्य (The tasks to be done during Holashtak)
सबसे पहले इस दिन, होलाष्टक शुरु होने वाले दिन होलिका दहन स्थान का चुनाव किया जाता है. इस दिन इस स्थान को गंगा जल से शुद्ध कर, इस स्थान पर होलिका दहन के लिये लकडियां एकत्र करने का कार्य किया जाता है. इस दिन जगह-जगह जाकर सूखी लकडियां विशेष कर ऎसी लकडियां जो सूखने के कारण स्वयं ही पेडों से टूट्कर गिर गई हों, उन्हें एकत्र कर चौराहे पर एकत्र कर लिया जाता है.
होलाष्टक से लेकर होलिका दहन के दिन तक प्रतिदिन इसमें कुछ लकडियां डाली जाती है. इस प्रकार होलिका दहन के दिन तक यह लकडियों का बडा ढेर बन जाता है. व इस दिन से होली के रंग फिजाओं में बिखरने लगते है. अर्थात होली की शुरुआत हो जाती है. बच्चे और बडे इस दिन से हल्की फुलकी होली खेलनी प्रारम्भ कर देते है.
होलाष्टक में कार्य निषेध (Things that shouldn't be done during Holashtak)
होलाष्टक मुख्य रुप से पंजाब और उत्तरी भारत में मनाया जाता है. होलाष्टक के दिन से एक ओर जहां उपरोक्त कार्यो का प्रारम्भ होता है. वहीं कुछ कार्य ऎसे भी है जिन्हें इस दिन से नहीं किया जाता है. यह निषेध अवधि होलाष्टक के दिन से लेकर होलिका दहन के दिन तक रहती है. अपने नाम के अनुसार होलाष्टक होली के ठिक आठ दिन पूर्व शुरु हो जाते है.
होलाष्टक के मध्य दिनों में 16 संस्कारों में से किसी भी संस्कार को नहीं किया जाता है. यहां तक की अंतिम संस्कार करने से पूर्व भी शान्ति कार्य किये जाते है. इन दिनों में 16 संस्कारों पर रोक होने का कारण इस अवधि को शुभ नहीं माना जाता है.

होलाष्टक की पौराणिक मान्यता (The significance of Holashtak from ancient times)
फाल्गुण शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन अर्थात पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है. इस दिन से मौसम की छटा में बदलाव आना आरम्भ हो जाता है. सर्दियां अलविदा कहने लगती है, और गर्मियों का आगमन होने लगता है. साथ ही वसंत के आगमन की खुशबू फूलों की महक के साथ प्रकृ्ति में बिखरने लगती है. होलाष्टक के विषय में यह माना जाता है कि जब भगवान श्री भोले नाथ ने क्रोध में आकर काम देव को भस्म कर दिया था, तो उस दिन से होलाष्टक की शुरुआत हुई थी.
होलाष्टक से जुडी मान्यताओं को भारत के कुछ भागों में ही माना जाता है. इन मान्यताओं का विचार सबसे अधिक पंजाब में देखने में आता है. होली के रंगों की तरह होली को मनाने के ढंग में विभिन्न है. होली उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडू, गुजरात, महाराष्ट्र, उडिसा, गोवा आदि में अलग ढंग से मनाने का चलन है. देश के जिन प्रदेशो में होलाष्टक से जुडी मान्यताओं को नहीं माना जाता है. उन सभी प्रदेशों में होलाष्टक से होलिका दहन के मध्य अवधि में शुभ कार्य करने बन्द नहीं किये जाते है.
होलाष्टक का एक अन्य रुप बीकानेर की होली (Bikaner Holi, a unique form of Holashtak)
होलाष्टक से मिलती जुलती होली की एक परम्परा राजस्थान के बीकानेर में देखने में आती है. पंजाब की तरह यहां भी होली की शुरुआत होली से आठ दिन पहले हो जाती है. फाल्गुन मास की सप्तमी तिथि से ही होली शुरु हो जाती है, जो धूलैण्डी तक रहती है. राजस्थान के बीकानेर की यह होली भी अंदर मस्ती, उल्लास के साथ साथ विषेश अंदाज समेटे हुए हैं. इस होली का प्रारम्भ भी होलाष्टक में गडने वाले डंडे के समान ही चौक में खम्भ पूजने के साथ होता है.
